- रासबिहारी पाण्डेय
वृंदावन का मोर और बंदरों से प्राचीन संबंध है ।यहाँ मोर तो आजकल बहुत कम दिखते हैं लेकिन बंदर बहुतायत मात्रा में हैं। प्रख्यात मंदिरों के परिसरों में तो हैं ही ,बाजारों और गलियों में भी दौड़ते-भागते दिखते रहते हैं ।कुछ श्रद्धालु इनके खाने पीने के लिए कुछ खास जगहों पर खाद्य सामग्री लेकर जाते हैं ।अगर बंदर राह चलते कोई वस्तु झपट कर भाग जाते हैं ,तब उन्हें खाद्य पदार्थ देना पड़ता है तभी वह वह सामान छोड़ते हैं ।कभी-कभी सामान नहीं भी छोड़ते क्योंकि जब उनके साथ ५-१०बंदर अतिरिक्त हो जाते हैं तो यात्री सबको खिला नहीं पाते ।जिसके कब्जे में समान रहता है,अगर उस बंदर की क्षुधापूर्ति कायदे से नहीं हुई तो सामान गया ही समझिए।
वृंदावन के बंदरों और दुकानदारों का गुप्त समझौता लगता है क्योंकि दुकानों की सामग्री या मिठाई को वे हाथ नहीं लगाते ,सिर्फ यात्रियों के हाथ की वस्तु को ही निशाना बनाते हैं ।अगर नगर में किसी VIP नेता या मंत्री का आगमन होता है तो उनकी सुरक्षा में कुछ काले बंदर मंगाए जाते हैं ।कुछ बंदर छतों पर चलते हैं और कुछ बंदर वाहन के अगल बगल से चलते हैं ।वह दृश्य बड़ा अद्भुत लगता है। स्थानीय बंदर काले बंदरों से इस कदर डरते हैं कि इनके पास नहीं फटकते ।मेरे मन में जिज्ञासा हुई ….क्या इन्हें जाड़े में ठंड नहीं लगती ….वे ठंड का सामना कैसे करते हैं ? वृंदावन के एक स्थानीय सज्जन ने बताया कि जाड़े के दिनों में वे कोई न कोई सुरक्षित कोना ढूंढ लेते हैं और १०-१२ की संख्या में एक दूसरे पर लद जाते हैं।परस्पर प्राप्त गर्मी से जाड़ा कट जाता है । कुछ साल पूर्व बंदरों का नसबंदी अभियान चला मगर तब बंदरों की संख्या अचानक बढ़ गई ।इस दैवीय चमत्कार के सामनेअभियान बीच में ही रोकना पड़ा ।
कहते हैं एक बार अकबर ने तुलसीदास को अपने दरबार में रहने के लिए बुलावा भेजा ।तुलसीदास ने एक दोहा लिखकर भेज दिया- हौं चाकर रघुवीर को पटौ लिखो दरबार /तुलसी अब का होईहैं नर के मनसबदार //
अकबर को अपनी तौहीन महसूस हुई ।उसने तुलसीदास को गिरफ्तार करवा लिया ।गोस्वामी जी ने संकट की घड़ी में हनुमान जी को याद किया, परिणाम स्वरुप बंदरों ने आगरा शहर में इतना उत्पात मचाया कि अकबर ने तुलसीदास से क्षमा याचना और उन्हें तत्काल रिहा करवाया।
स्वामी विवेकानंद की निगमानंद द्वारा लिखित जीवनी में वर्णन है कि जब वे राधाकुंड में स्नान कर रहे थे उनके कपड़े बंदर ले उड़े।उन्होंने बहुत कोशिश की मगर अपने कपड़े पाने में असफल रहे।मन मारकर भीगा कौपीन पहने हुए वे पास की लताओं की ओट में चले गए।थोड़ी देर बाद एक बालक उन्हें उनके कपड़े देकर लुप्त हो गया।कहा जाता है कि स्वयं श्रीकृष्ण ने उन्हें इस संकट से बचाया।
मनुष्य किसी के मरने पर इतनी संख्या में इकट्ठे नहीं होते जितने बंदर इकट्ठे हो जाते हैं ।एक बंदर के मरने पर हजारों बंदर इकट्ठे हो जाते हैं ।वे मरने वाले बंदर को उठाकर कहां ले जाते हैं आज तक किसी को नहीं पता। एक और बात ……..बंदरिया को अपने छोटे बच्चे के मरने का विश्वास ही नहीं होता ।वह कई कई दिनों तक उसे सीने से लगाए फिरती है …...तब तक ,जब तक कि वह बदबू न देने लगे ,सीने से नहीं हटाती ।बंदरों से बचने के लिए कुछ लोगों ने घरों और छतों पर जालियां लगवा रखी हैं।जालियों के ऊपर दौड़ते-भागते बंदरों की छवि बहुत अच्छी लगती है परिक्रमा मार्ग में ऐसे-ऐसे कपिराज हैं कि आपके पैर में पहनी हुई चप्पल भी निकाल लेंगे और वापस तभी देंगे जब आप उन्हें खाद्य सामग्री देंगे ।यहाँ बंदरों के उन्मूलन का कई बार अभियान चला लेकिन हर बार टायँ टायँ फिस्स हो गया।बंदरों से रहित वृंदावन सचमुच अच्छा नहीं लगेगा।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें