शनिवार, 23 अगस्त 2025

दाद लोगों की, गला अपना, ग़ज़ल उस्ताद की



रासबिहारी पाण्डेय


साहित्यिक गोष्ठियों/ कवि सम्मेलनों में नि:संकोच या कहिए धड़ल्ले से दूसरे की रचनाएं पढ़ने वालों की तादाद पहले की अपेक्षा अब कहीं अधिक हो गई है। रचनाओं के लिए पहले ऐसे जीव काव्य संग्रहों के भरोसे रहते थे मगर फेसबुक, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम आदि आ जाने के बाद उनके लिए८ ज्यादे आसानी हो गई है। सोशल मीडिया से चुराई हुई रचनाएं ये लोग अपने नाम से समारोहों में न सिर्फ प्रस्तुत करने लगे हैं बल्कि हूबहू या थोड़ा हेर फेर करके कविता संग्रहों में छपाने भी लगे हैं। दिल्ली,कोलकाता या सुदूर किसी ग्रामीण अंचल में बैठे किसी कवि को क्या पता कि किसी दूसरे शहर में उसकी लिखी कविता कौन सुना रहा है या अपने नाम से काव्य संग्रह में छपा रहा है?

फेसबुक से चुरा कर फेसबुक पर ही पोस्ट करने वालों की भी अच्छी खासी संख्या है। कुछ समय पहले गजब हुआ... एक लेखिका ने एक लेखक की कहानी हूबहू उठाकर हंस पत्रिका में छपा ली। भारी लानत मलामत के बावजूद उसने अपनी गलती भी नहीं स्वीकार की। राहत इंदौरी ने कभी एक शेर कहा था-

'मेरे कारोबार में सबने बड़ी इमदाद की 

दाद लोगों की, गला अपना, गजल उस्ताद की।'

ऐसे भी दु:साहसी भरे पड़े हैं कि मूल रचनाकार के सामने ही उसकी रचना सुना देंते हैं।इस हादसे से बड़े-बड़े रचनाकार रूबरू हो चुके हैं।फिराक  गोरखपुरी के सामने ही एक युवा शायर ने जब उनका कलाम सुनाया तो फिराक ने टोका- बरखुरदार!तुमने अपने नाम से मेरा कलाम कैसे सुना दिया? शायर ने कहा-  कभी-कभी खयालात टकरा जाते हैं फिराक साहब। फिराक ने कहा-' साइकिल से साइकिल तो टकरा सकती है लेकिन साइकिल से हवाई जहाज नहीं टकरा सकता।' इतना मारक जुमला सुनकर शायर पानी पानी हो गया।

 उर्दू में दो तरह की चोरी मानी गई है। पहले को सरका और दूसरे को तवारुद कहते हैं। जब किसी की रचना हूबहू चुरा ली जाए तो उसे सरका और थोड़ा घालमेल के साथ प्रस्तुत की जाय तो उसे तवारुद कहते हैं।ऐसे कवियों को लोग चरबा करने वाला शायर भी कहते हैं।मंच से अतिरिक्त ध्यान और सम्मान पाने के लिए कुछ कवि/ शायर पीएचडी न होने के बावजूद स्वघोषित डॉक्टर बन जाते हैं।ये अपने कुछ चेले भी पाल कर रखते हैं जो मंच के नीचे से उन्हें वाह डॉ. साहब,वाह डॉ.साहब की आवाज लगा कर दाद दिया करते हैं। किसी वरिष्ठ कवि ने डॉक्टरेट के बारे में पूछने की गुस्ताखी कर दी तो उससे उलझ जाएंगे या फिर कोई झूठ गढ़कर सुना देंगे- फलां यूनिवर्सिटी ने मुझे मानद डिग्री प्रदान की है।

हिंदी उर्दू कवि सम्मेलन /मुशायरों के मंच पर अनेक कवयित्रियां ऐसी हैं जिनके पास अपना कलाम नहीं है। लिखने का काम उनके उस्ताद या प्रेमी करते हैं,सज संवर कर नाजो अदा से सुनाने का काम उनका होता है।कवियों  और संचालकों के साथ उनका उत्तर प्रति उत्तर ऐसा होता है कि बड़े-बड़े कव्वाल शर्मा जाएँ। वाणी की वेश्यावृत्ति इसे ही कहते हैं। इनमें से कई इतनी शातिर हैं कि हिंदी उर्दू की मजलिसें चला रही हैं और उसके नाम पर अच्छा खासा चंदा भी वसूल रही हैं। इनकी असलियत जानने के बावजूद नई पुरानी उम्र के अधिकांश कवि शायर नजदीकियां बनाये रहने को न सिर्फ आतुर रहते हैं बल्कि उनके प्रोमोशन और उत्साहवर्द्धन में भी लगे रहते हैं। कभी विकल साकेती ने कहा था- 

भौरों से गीत लेकर कलियां सुना रही हैं

रसपान करने वाले रसपान कर रहे हैं।

समाज के कर्णधारों की यह जिम्मेदारी बनती है कि बरसात में खर पतवार की तरह उग आये इन नकली कवि शायरों को इनकी औकात बताएं और समाज को साहित्यिक प्रदूषण से बचाएँ।

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