नहीं इतिहास में ऐसी मिली नज़ीर कोई
कि तख्ते दिल्ली पे बैठा मिला फकीर कोई.
श्याम बाहों में भरें खुद ही लिपट जाते हैं
देख लेते हैं अगर मीरा सा अधीर कोई.
गालियाँ दे रहा हो फिर भी लोग पाँव छुये
हुआ वो एक ही न दूसरा कबीर कोई.
अना का मोल बता देते हैं हम ही वर्ना
खरीद सकता नहीं कितना भी अमीर कोई.
कि जिस हिसाब से रीढ़ें निकल रही हैं यहाँ
किसी के पास बचेगा नहीं जमीर कोई.
रासबिहारी पाण्डेय
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