शनिवार, 27 सितंबर 2025

शिव तांडव स्तोत्र(हिंदी अनुवाद)


जटा के वन से गिर रहे गंग धार से पवित्र 

कंठ में लटक रहे भुजंग हार हैं विचित्र 

डमड् डमड् डमड् निनाद मंडित प्रचंड रूप 

में किया जिन्होंने नृत्य तांडव अजब अनूप।


दयालु हों कृपालु हों कराल महाकाल शिव!

जटा कड़ाह वेगवती देवनदी की तरंग 

लहराती शीश पर चंचल लता सी गंग 

चमक रहा ललाट जैसे अग्नि  प्रज्वलित

जिनके शीश है किशोर चंद्रमा विराजित


उनमें नित नवीन मेरा राग अनुराग हो...


दयालु हों कृपालु हों कराल महाकाल शिव!


गिरिजा आभूषण से दस दिशा प्रकाशित 

जिनका मन देख देख हो रहा है पुलकि

कृपा दृष्टि से जिनकी मिटती दारुण विपत्ति 

वे शिव कब करेंगे मेरा मन आनंदित!

दयालु हों कृपालु हों कराल महाकाल शिव!


जटा भुजंग फण के मणि पिंगल प्रकाशमान 

दिशा देवियों के मुख कुंकुम करें प्रदान 

मदमस्त गज चर्म धारण से स्निग्ध वर्ण अद्भुत छवि भूतनाथ को है मेरा प्रणाम।

दयालु हों कृपालु हों कराल महाकाल शिव!

इंद्रादि देव चरणों में शीश जब नवाएं 

पुष्प रज से धूमिल हों शिव की पादुकाएं 

शेषनाग हार से बंधी हुई जटा वाले 

शशिशेखर चिर संपत्ति दें यही मनाएं।


भाल वेदी अग्नि से भस्म किया काम को 

झुकते हैं इंद्र नित्य ही जिन्हें प्रणाम को

महादेव शिव हमको अक्षय संपत्ति दें

सुधा कांति चंद्र संग धारें मुंडमाल को

दयालु हों कृपालु हों कराल महाकाल शिव!

काम को हवन किया कराल भाल ज्वाल में 

गिरिजा कुच अग्रभाग चित्रकृति काल में 

एकमात्र चित्रकार हैं जो इतने निपुण

नित नवीन रति मेरी बढ़े महाकाल में

दयालु हों कृपालु हों कराल महाकाल शिव!


कंठ जिनका है नवीन मेघ से घिरा हुआ अमावस के अंधकार सी है जिसमें श्यामता 

गज चर्म पहनें जो शीश धारें चंद्रमा

गंगाधर शिव दें मुझको अपार संपदा।

दयालु हों कृपालु हों कराल महाकाल शिव!


प्रफुल्ल नील कमल श्याम प्रभा भूषित 

कंठ देश की शोभा अद्वितीय अद्भुत अंधक गजासुर यमराज औ त्रिपुर के 

जो हैं संहारक शिव हों हमसे प्रमुदित।

दयालु हों कृपालु हों कराल महाकाल शिव!

१०

पार्वती कला कदंब मंजरी रस के मधुप 

मकरंद माधुरी पी रहे सहज स्वरूप 

कामदेव अंधक त्रिपुर गजासुर हंता

दक्षयज्ञ नाशक, यम के यम हैं शिव अनूप।

दयालु हों कृपालु हों कराल महाकाल शिव!


११


माथे पर वेगपूर्ण सर्प की फुंकार से 

भाल अग्नि फैल रही विकराल ज्वार में

धिमि धिमि मृदंग घोष पर करें जो तांडव 

मेरा अनुराग बढ़े शिव महाकाल में


१२

तृण हो या तरुणी, सेज हो या शिला 

रत्न हो या मिट्टी , सर्प हो या मुक्ता 

प्रजा या महीप, मित्र शत्रु को विचारे बिन 

सबको समान मान शिव को कब भजूंगा मैं..

दयालु हों कृपालु हों कराल महाकाल शिव!


१३

गंगा तट के निकुंज में निवास करते हुए

त्याग कर बुरे विचार भालचंद्र भजते हुए 

कर जोड़े शीश पर डबडबायी आंखों से 

कब सुखी बनूंगा मैं शिव मंत्र जपते हुए।


१४

पाठ स्मरण वर्णन नित्य यह जो करता है 

शुद्ध सदा रहता शिव भक्ति प्राप्त करता है 

मनुज की विपत्ति हरे सद्गति मिले उसे 

शिव चिंतन माया और मोह नष्ट करता है...

- रासबिहारी पाण्डेय


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