शुक्रवार, 22 अगस्त 2025

कुमार विश्वास की धृष्टता


रासबिहारी पाण्डेय


दुनिया भर के वक्ता रामकथा के लिए वाल्मीकि और तुलसीदास रचित रामायण को आधार बनाते हैं ,मगर कुमार विश्वास ने एक उर्दू शायर की नज्म को आधार बनाकर यूट्यूब पर'किसके गुलाम हैं राम'शीर्षक से एक वीडियो डाला है जिसके अनुसार भगवान राम अपनी एक जाँघ पर सीता को और दूसरी जाँघ पर शबरी को लिटाकर बेर खिला रहे हैं,तभी लक्ष्मण पानी लेकर पहुँचते हैं और यह देखकर उनकी त्यौरी चढ़ जाती है। शबरी से राम का मिलन सीता हरण के बाद होता है।किसी भी रामायण में शबरी और सीता को जाँघ पर सुलाने का प्रसंग नहीं है।उर्दू शायर रामकथा के आचार्य कबसे हो गए ?क्या किसी हिंदी कवि में यह साहस है कि वह कुरआन में फेरबदल करके अपनी कविता का विषय बनाए؟ 'सर तन से जुदा'का फतवा जारी होने में एक दिन की भी देर नहीं लगेगी।कुमार विश्वास ने यह बहुत बड़ा दु:साहस किया है,उन्हें हिंदू समाज से माफी माँगते हुए तत्काल यह वीडियो हटा लेना चाहिए। 

इनके द्बारा एक और गलत उद्धरण दिया जा रहा है।बहेलिए द्वारा नर क्रौंच को निशाना बनाये जाने के बाद मादा क्रौंच के विलाप से द्रवित होकर वाल्मीकि ने पहला श्लोक रचा लेकिन स्वघोषित युग कवि उल्टी कथा सुना रहे हैं कि नर पक्षी रोने लगा तब वाल्मीकि के मुख से यह श्लोक फूटा,यही नहीं नर पक्षी के रुदन को विशेष महिमा मंडित भी कर रहे हैं। भगवान इन्हें सद्बुद्धि दे और श्रोताओं को विवेक ताकि इनके अनाप शनाप कथन को ग्रहण न करें।

इनकी कथा रामकथा कम,किसी मोटिवेसनल स्पीकर की स्पीच अधिक लगती है। 

वे जब तब भगवान राम के लिए इमामे हिंद शब्द का भी उपयोग करते हैं. इमाम का अर्थ मुस्लिम पुरोहित होता है. भगवान राम तो अनंतकोटि ब्रह्मांड नायक परम ब्रह्म हैं जिनसे करोड़ों हिंदुओं की आस्था जुड़ी है,उन्हें इमाम बता कर वे न सिर्फ अपनी अज्ञानता का परिचय दे रहे हैं बल्कि करोड़ों हिंदुओं की आस्था का भी निरादर कर रहे हैं।

आज ही कथा का स्वरूप बिगड़ा है,ऐसा नहीं है,आदिकाल से राक्षस/राक्षसियाँ अपने स्वार्थ बस साधु/साध्वी का वेष बनाते रहे हैं. रामचरितमानस में रावण और कालनेमि द्वारा भी कथा का जिक्र आता है.लेकिन यह भी कहा है कि- 

उघरहिं अंत न होय निबाहू/

कालनेमि जिमि रावन राहू//

एक न एक दिन इनका भाँडा फूट ही जाता है.बावजूद इसके कलिकाल में इनके समर्थकों को कोई फर्क नहीं पड़ता.आसाराम बापू अगर जेल से आज रिहा हो जायँ तो कल से पुन:इनके समर्थक जय जयकार करने में जुट जाएँगें.जिन लोगों ने किसी भी क्षेत्र में अपना नाम दाम बना लिया है,उनके समर्थक अपने लाभ के मद्देनजर आँख मूँदकर उनके लिए कुछ भी करने को तैयार हैं.

बहुतेरे कथावाचकों को सुनते हुए लगता है कि वे सिर्फ गप शप या जगत चर्चा में लगे हैं,कथा के बाद जब आरती होने लगती है तब राम कृष्ण का नाम सुनाई पड़ता है.

मानव मन की ऐसी कौन सी उलझन है जिसको सूर,तुलसी,मीरा,कबीर या भक्तिकाल के अन्य कवियों ने स्वर नहीं दिया है,बावजूद इसके कथाओं में फिल्मी गीत /ग़ज़लों का सहारा लिया जा रहा है.

कथावाचकों के सहारे  उनके अनुयायियों /संयोजकों को कमाई का भरपूर मौका मिलता है,इसलिए वे उनकी किसी भी बात का आँख मूँद कर समर्थन करते हैं .

जैसे वोट बैंक के लिए नेता " अल्पसंख्यक हितों " शब्द का सहारा लेते हैं,वैसे ही इनके समर्थक भी सर्वधर्म समभाव की बात करते हैं। व्यासपीठ से इस्लाम की वकालत करने वालों को सही कैसे ठहराया जा सकता है؟ सबसे अधिक सहिष्णु या नास्तिक हिंदुओं में ही हैं,मुस्लिम ,ईसाई,बौद्ध और सिक्खों में यह कंफ्यूजन नहीं है।


सुदर्शन न्यूज चैनल ने धर्म शुद्धि अभियान के तहत दावा किया था कि  उसके पास  प्रवचनकर्ताओं के इस्लाम प्रेम वाले ३२३ वीडियो हैं जिसमें ३४ वीडियो सिर्फ मोरारी बापू के हैं।चैनल ने यह भी वादा किया था कि धर्म संसद आयोजित करेगाऔर सबसे माफी मँगवाएगा,हिंदुओं को कथा जेहाद करने वालों के खिलाफ जागृत करेगा,लेकिन संसाधनों की कमी का बहाना बनाते हुए उसने जल्द ही यह अभियान बंद कर दिया। खोजी पत्रकारों के लिए यह भी एक बड़ा मुद्दा है.

कोरोना काल के दौरान मोरारी बापू और अन्य कई कथाकारों ने व्यास पीठ से अपने इस्लाम प्रेम वाले वक्तव्यों के लिए माफी माँगी।

तभी चित्रकूट पीठाधीश्वर स्वामी रामभद्राचार्य ने कथावाचकों को संदेश दिया कि प्रवचन के दौरान भारतीय वाड़मय से ही उद्धरण देना चाहिए न कि फिल्मी गाने और उर्दू शायरी का सत्र शुरू करना चाहिए. गोस्वामी तुलसीदास ने मानस में कहा है -

जेहि महँ आदि मध्य अवसाना/

प्रभु प्रतिपाद्य राम भगवाना//

इस मुद्दे पर जो बिल्कुल चुप हैं,उनके लिए दिनकर की यह पंक्ति सादर समर्पित है-

जो तटस्थ हैं,समय लिखेगा ,उनका भी अपराध|

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