रासबिहारी पाण्डेय
गत दिनों न्यूज चैनलों पर धार्मिक अंधविश्वास बनाम वैज्ञानिक सोच पर खूब बहस हुई।इसके केंद्र में थे बागेश्वर धाम के आचार्य धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री, जिनकी उम्र मात्र अभी मात्र २७ साल है।अभी उन्हें लंबा सफर सफर तय करना है,लेकिन इसी उम्र में उनको जो उपलब्धियां हासिल हुई हैं, उस पर रश्क किया जा सकता है। पौराणिक आख्यानों के अनुसार ध्रुव और प्रह्लाद को बहुत बचपन में ही सिद्धियां प्राप्त हो गई थीं।कहा गया है- तेजसां वयःन समीक्ष्यते।
धीरेंद्रकृष्ण चित्रकूट पीठाधीश्वर श्रीरामभद्राचार्य जी के शिष्य हैं जिन्हें रामायण,रामचरितमानस, श्रीमद्भगवद्गीता,श्रीमद्भागवत जैसे कितने ही ग्रंथ कंठस्थ हैं। कौन सा श्लोक किस अध्याय में कितने नंबर पर है,प्रज्ञा चक्षु होने के बावजूद उन्हें याद है।क्या यह किसी चमत्कार से कम है? श्रीरामजन्मभूमि के मुकदमे में जीत दिलाने में वेद शास्त्रों से उद्धरण निकाल कर उक्त स्थान की प्रामाणिकता सिद्ध करने में उनका अहम योगदान है।श्रीरामभद्राचार्य जी सहित हिंदू धर्म के कई आचार्यों ने धीरेंद्र की उपलब्धियों को उनकी साधना का चमत्कार बतलाया है।हनुमान जी के आराधक होने के नाते उन्हें प्रकाम्य सिद्धि प्राप्त है,जिसके अनुसार साधक प्रार्थी के मन की बात जान जाता है।
गोस्वामी तुलसीदास लिखते हैं-
कलि बिलोकि जग हित हर गिरिजा।
साबर मंत्र जाल जिन्ह सिरजा।।
अनमिल आखर अरथ न जापू।
प्रगट प्रभाव महेश प्रतापू।।
देवाधिदेव महादेव और पार्वती ने कलिकाल के प्रकोप को देखते हुए ऐसे साबर मंत्रों की रचना की जिनके मंत्रों के अक्षर बेमेल हैं और जिनका कोई ठीक अर्थ नहीं लेकिन शिव जी के प्रताप से उनका प्रभाव प्रत्यक्ष है।लोक में कितने ही ओझा गुनी शारीरिक पीड़ाओं के निवारण और सांप बिच्छू के काटने पर इन मंत्रों से उपचार करते देखे जा सकते हैं।
हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले व्यक्तियों को सनातन ग्रंथों के अतिरिक्त इस सदी में प्रकाशित दो पुस्तकों को अवश्य पढ़ना चाहिए।पहला 'हिमालय के साधु संत'और दूसरा 'योगी कथामृत', इन दोनों पुस्तकों में पिछले सौ दो सौ वर्षों के भीतर हुए अनेक सिद्ध संतों के चमत्कारिक कारनामों का विस्तार से वर्णन है। उत्तर भारत के लोग देवरहवा बाबा के नाम से खूब परिचित हैं। राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद बहुत बचपन में अपनी दादी के साथ उनके दर्शन करने गए थे तभी उन्होंने बता दिया था कि यह बालक एक दिन देश के एक महत्वपूर्ण पद पर बैठेगा। राष्ट्रपति बनने के बाद डाक्टर राजेंद्र प्रसाद उनके दर्शन के निमित्त पुनः गए थे।देवरहवा बाबा को पिछली चार पीढ़ियों से लोग देखते आ रहे थे और उनकी उम्र के बारे में किसी को ठीक-ठीक अंदाजा नहीं था।सभी कहते थे कि हमारे दादा भी मिले थे, हमारे परदादा भी मिले थे। अगर दो तीन सौ वर्षों से कोई व्यक्ति उसी रूप में मौजूद है तो यह भी किसी चमत्कार से कम नहीं है। पानी पर चलने,हवा से कोई फल प्रकट कर किसी को प्रसाद दे देना,उसके मन की बात बता देना, आने वालों को बिना पूर्व परिचय के नाम से पुकारना आदि उनके चमत्कार को लोगों ने बरसों बरस देखा।
रामकृष्ण परमहंस को काली माता की सिद्धि प्राप्त थी।अपने शिष्य स्वामी विवेकानंद को उन्होंने देवी का साक्षात्कार भी कराया था। स्वामी विवेकानंद ने एक पत्र में स्वयं यह स्वीकार किया है कि तमिलनाडु में उन्हें एक ऐसे व्यक्ति का साक्षात्कार हुआ था जिसने उनके भूत,भविष्य और वर्तमान के बारे में बहुत सारी बातें बता कर उन्हें चमत्कृत कर दिया था।
संसार में उनका ही जीना सार्थक है जो परोपकार में रत हैं।अगर कोई संत समाज को सात्विकता के साथ सत्कर्म के रास्ते पर चलते हुए ईश्वर आराधना के लिए प्रेरित कर रहा है और हर परीक्षा से गुजरने के लिए भी तैयार है तो टीआरपी की लालच में उसका मीडिया ट्रायल करना निंदनीय है।
परहित सरिस धर्म नहिं भाई।
पर पीड़ा सम नहिं अधमाई।।
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