शनिवार, 27 सितंबर 2025

सब ते कठिन जाति अवमाना


रासबिहारी पाण्डेय



जद्यपि जग दारुण दुख नाना।

सब तें कठिन जाति अवमाना।।

यद्यपि दुनिया में और भी अनेक दुख है़ं, लेकिन जाति का अपमान सबसे बढ़कर है। यदि किसी की जाति को हीन बता कर उस पर तंज किया जाए तो इससे बड़ा अपमान कुछ और नहीं हो सकता। जातिगत अपमान सिर्फ दलितों और पिछड़ों का ही नहीं होता, सवर्णों का भी खूब होता है। लालू यादव ने मु्ख्यमंत्री रहते हुए एक समय बिहार में नारा दिया था- भूरा बाल काटो,यानी भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण और लाला (कायस्थ) को काटकर,इनका वर्चस्व खत्म करके इन्हें सत्ता से बेदखल करो।लालू अपने हर भाषण में एक जुमला उछालते थे- सीता को चुराने वाला रावण किस जाति का था? जनता कहती थी- ब्राह्मण।इस पर उनका जवाब होता था- ऐसी घटिया हरकत करने वाले ब्राह्मणों का बहिष्कार करो।

समाज में जातिवाद का जहर घोलकर लालू यादव 15 साल तक सत्ता पर काबिज रहे लेकिन आज सारा परिदृश्य साफ हो गया है।दलितोत्थान के नाम पर चरवाहा विद्यालय खोलकर चारा घोटाला करने वाले लालू यादव समय के साथ बेनकाब हो गए।अदालत ने उनकी जालसाजियों के एवज में दंडित करते हुए उनके चुनाव लड़ने तक पर रोक लगा रखी है।मायावती ने सवर्णों के लिए किन किन शब्दों का प्रयोग किया है,यह सबको पता है।


हाल ही में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने 

रविदास जयंती पर एक गैर जिम्मेदार वक्तव्य दिया - जातियां भगवान ने नहीं, पंडितों ने बनाई हैं। पंडितों से उनका तात्पर्य ब्राह्मणों से है।इस बात का कोई तथ्यात्मक आधार नहीं है।यह विशुद्ध झूठ है जो पिछड़ी जातियों की सहानुभूति और वोट प्राप्त करने के लिए बोला गया है।


'जाति पांति पूछे नहीं कोई, हरि को भजे सो हरि का होई।'संत कवियों ने राज दरबारों से दूर रहकर भी साहित्य और संगीत का एक समृद्ध जीवन जिया और दुनिया के सामने यह आदर्श प्रस्तुत किया कि सिर्फ धन और पद ही

प्राप्ति की वस्तु नहीं है। रैदास,वाल्मीकि और वेदव्यास तीनों पिछड़ी जातियों से आते हैं मगर गौर से सोचिए क्या इन्हें  इनकी जातियों की वजह से याद किया जाता है या उनके विचारों के लिए याद किया जाता है?आज तो जाति के आधार पर आरक्षण मिल रहा है।कितने ही सवर्णों ने आरक्षण का लाभ लेने के लिए अपनी जाति बदलने की कोशिश की है और पकड़े गए हैं।सही मायने में दुनिया में दो ही जातियां हैं- एक अमीर और एक गरीब। साहित्य,कला और राजनीति का एक ही लक्ष्य होना चाहिए अमीरी और गरीबी की इस खाईं को पाटने का काम करे, न कि उसे और गहरा करे। जो लोग जाति और धर्म के नाम पर समाज को बांटते हैं वे मानवता के दुश्मन हैं।समाज में पहले से ही जातिगत भेदभाव चरम पर है। मुसलमानों में शिया और सुन्नी का विवाद अक्सर कत्लेआम तक आ जाता है। हिंदू सवर्णों में इतना वर्ग भेद है कि गोत्र और कुरी के आधार पर एक दूसरे को नीचा दिखाया जाता है। दलितों ने भी अपने स्तर पर अपनी ऊंचाई नीचाई बांट रखी है। हिंदुस्तान और पाकिस्तान का बंटवारा जाति/ धर्म के आधार पर ही हुआ था। अगर यह आधार विकास करने में सक्षम होता तो पाकिस्तान बहुत विकसित देश होता लेकिन आज  विश्व में उसकी सबसे खराब हालत है।  दलितों का खैरख़्वाह बनने के लिए उनके हित में काम करने की जरूरत है ,उनके मानसिक अंधकार को दूर करने के लिए उन्हें शिक्षित करने की जरूरत है, समाज के मुख्यधारा में लाने के लिए नक्सलवाद से उबारने की जरूरत है। उन्हेंपंडितों के खिलाफ भड़का कर कुछ भी हासिल होने वाला नहीं है। किसी शायर ने क्या खूब कहा है -

अगर बुरा न लगे एक मशवरा है मेरा 

तुम अगर मान लो तो अच्छा है 

सबको पहचानना जरूरी नहीं 

खुद को पहचान लो तो अच्छा है।

हर सियासी पार्टी को अपनी सीमाएँ जान लेनी चाहिए,जनता अब इतनी नादान नहीं रह गई कि ऐसे जुमलों से अपना मत बदल ले।किसी की छवि बनने और बिगड़ने में एक लंबा वक्त लगता है।

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