रविवार, 31 अगस्त 2025

साधो! मैं हूं कवि बरियारा ।

 साधो! मैं हूं कवि बरियारा ।

संग में राखूं एक पतुरिया इन आंखिन को तारा।

सभा सजावत वही हमारी निज सखियन के द्वारा।

हर इक विधा में मुंह मारूं पर कोउ न पूछनिहारा।

निज कुटिया में निज चादर से हो सम्मान हमारा।

श्रेष्ठ कविन को देखत ही बस चढ़ता मेरा पारा।

रूप शिखंडी का धरकर मैं करता गारी गारा।

हूँ अतीक़ को चेला देखूं परधन औ परदारा।

चमचा मेरा दैत्यमणि अति हकलात बेचारा।

मद्यपान की खातिर लेकिन करत रहत

दरबारा। 

साधो! मैं हूं कवि बरियारा।।



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें