साधो कर बैठी मैं प्रीत
वह है राम रहीम हमारा,मैं उसकी हनीप्रीत।
आँख का अंधा गाँठ का पूरा मिला मुझे मनमीत।
भैंसे सा है रंग, स्यार सा चतुर सुनाए गीत।
आधा हिंदू, तुर्क है आधा, वर्णसंकरी रीत।
सुन्नत भी करवा बैठा है, पहन जनेऊ पीत।
निज सखियन से जब मिलवाती, रहतीं वे भयभीत।
मगर मगन मन सुनती रहतीं, कुसुम भ्रमर संगीत।
है सवाल पेट का मेरे, मैं तो उससे क्रीत!
समझ नहीं पाती मैं इसको हार कहूँ या जीत।
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