शनिवार, 16 अगस्त 2025

क्या है गीता का संदेश?



-रासबिहारी पाण्डेय


मनुष्य के हर प्रश्न का उत्तर गीता में मौजूद है।गीता का मूल संदेश है -यज्ञ,दान और तपकर्म कभी छोड़ो मत।सदैव वर्तमान में जियो।लोग योग को आसन प्राणायाम सो जोड़ लेते हैं जबकि गीता के अनुसार कर्म में प्रवीणता ही योग है-योगःकर्मसु कौशलम्।योगी के बारे में कहा गया है कि जो जगत को सम भाव से देखता है और सुख दुख में एक समान रहता है असली योगी वही है।गीता हमें न सिर्फ जीवन जीने की सही कला सिखाती है बल्कि जीवन और जगत के तमाम रहस्यों की वैज्ञानिक व्याख्या भी करती है।गीता पढ़कर संन्यास का भाव नहीं जगता,कर्म में आस्था बलवती होती है- जैसे अर्जुन के मोह का निराकरण हुआ।

 इस अनित्य संसार में वही सुखी है जो कर्म करते हुए अपने कर्तव्यपथ पर बढ़ता जाता है।कर्तव्य बोध के लिए गीता ज्ञान की कामधेनु है।गीता स्वधर्म को भूलकर संसार के संग्राम से भागते हुए दुखी जीव को धर्म का संदेश और विजय का वरदान देनेवाली विश्वपुरुष की दिव्य वाणी है।गीता में व्यक्ति और समष्टि से संबंध रखनेवाली प्राथमिक शिक्षा से उच्चतम तत्त्वज्ञान तक की अखंड जीवनधारा बहती है।गीता के ज्ञान में जीवन का सफलता योग है।गीता के दर्शन में विश्व का विराट रूप है।गीता में वह शांति और आनंद का योग है जिसे प्रत्येक प्राणी ढ़ूँढ़ रहा है।यह मनुष्य में निर्भय,सुखी,विजयी और स्वतंत्र जीवन जीने की महाशक्ति भर देती है।

जीवन एक महायुद्ध है।मनुष्य के भीतर और बाहर कुरूक्षेत्र का बड़ा मैदान है।देवता और दानव रूपी सद्गुण और दुर्गुणों में कौरवों-पाण्डवों जैसा युद्ध छिड़ा रहता है।जो ईश्वर का स्मरण करके इस युद्ध में डटे रहते हैं, विजयश्री उनका वरण करती है।जीवन कर्म के लिए मिला है।कर्म करते हुए नित नूतन प्रगति करना ही जीवन का उद्देश्य होना चाहिए।कर्म छोड़कर बैठ जाना मृत्यु है।गीता ब्रह्मविद्या और कर्म का संबंध जोड़नेवाला योगशास्त्र है।जो अपने अहंकार की बलि देकर श्रद्धा तत्परता और संयम के पथ पर सावधानी से चलता है उसे उसका लक्ष्य अवश्य मिलता है – यही गीता का संदेश है     

 गंगा भगवान के श्री चरणों से निकली हैं और गीता उनके मुख से ।गंगा में जो आकर स्नान करता है उसी को मुक्त करती है किंतु गीता घर घर जाकर उन्हें मुक्ति का मार्ग दिखाती है ।सुनने और सुनाने वाले दोनों को मुक्ति ।गीता का वास्तविक तात्पर्य श्री भगवान ही जानते हैं ।कुछ अंशों में अर्जुन जिनके मोह को नष्ट करने के लिए गीता कही गई और तीसरे वे जिन्हें भगवत्कृपा प्राप्त हुई है।


गीता का पाठ आमतौर पर मनुष्य की मृत्यु होने के बाद संबंधी जन शोक सभा में किया करते हैं देखते हैं कि गीता का आश्रय लेने पर हमें अपने आप मुक्ति मिल जाती है। गीता में मन पर नियंत्रण कैसे रखा जाए, क्रोध पर नियंत्रण कैसे रखा जाए इसका भी वर्णन है। श्रीकृष्ण से जब अर्जुन पूछते हैं -

चंचलं हि मनः कृष्ण प्रमाथि बलवदृढ़्म् ....भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि विरक्ति अभ्यास से यह संभव है.

जीवन एक महायुद्ध है।मनुष्य के भीतर और बाहर कुरूक्षेत्र का बड़ा मैदान है।देवता और दानव रूपी सद्गुण और दुर्गुणों में कौरवों-पाण्डवों जैसा युद्ध छिड़ा रहता है।जो ईश्वर का स्मरण करके इस युद्ध में डटे रहते हैं विजयश्री उनका वरण करती है।जीवन कर्म के लिए मिला है।कर्म करते हुए नित नूतन प्रगति करना ही जीवन का उद्देश्य होना चाहिए।कर्म छोड़कर बैठ जाना मृत्यु है।गीता ब्रह्मविद्या और कर्म का संबंध जोड़नेवाला योगशास्त्र है।जो अपने अहंकार की बलि देकर श्रद्धा तत्परता और संयम के पथ पर सावधानी से चलता है उसे उसका लक्ष्य अवश्य मिलता है – यही गीता का संदेश है।    


 


 


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