- रासबिहारी पाण्डेय
44 वर्ष किसी को भूलने के लिए कम नहीं होते मगर साहिर की लोकप्रियता दिन ब दिन बढ़ती ही जा रही है।59वर्ष 7 महीने 17 दिन की उम्र पाने वाले साहिर के नज़्मों,गीतों और गजलों का वजूद तब तक रहेगा जब तक इस दुनिया का वजूद है।
आमतौर पर फिल्मी गीतकारों को साहित्यिक दुनिया में वैसी प्रतिष्ठा नहीं प्राप्त होती, लेकिन साहिर ने अपने लेखन से वह मेयार कायम किया कि साहित्य और सिनेमा दोनों ही क्षेत्र के दिग्गजों ने उनका लोहा माना। सिनेमा की दुनिया में आने से पहले ही वह उर्दू अदब में स्थापित हो चुके थे। उनका शेरी मजमूआ 'परछाइयां' प्रकाशित होकर बहुचर्चित हो चुका था।बावजूद इसके फिल्मी दुनिया में उनकी राह आसान नहीं थी। वे कुछ दिनों तक आजीविका के लिए उर्दू के मशहूर कहानीकार कृष्ण चंदर के साथ बतौर सहायक जुड़े रहे। कहने वाले तो यहां तक कहते हैं कि मुंबई में टिके रहने के लिए उन्होंने कुछ दिनों तक उस दौर के सफल गीतकार संगीतकार प्रेम धवन के लिए घोस्ट राइटिंग भी की।(सफल होने के बाद ऐसा आरोप साहिर पर भी लगा कि उनके लिए यदा कदा जां निसार अख्तर भी घोस्ट राइटिंग किया करते थे।)उर्दू की मशहूर कहानी लेखिका इस्मत चुगताई के पति शाहिद लतीफ (जो खुद एक प्रतिष्ठित निर्माता निर्देशक थे )ने तो साहिर से यहां तक कह दिया कि आप चाहें तो हमारे यहां दो वक्त का खाना खा सकते हैं, लेकिन आपसे गाने लिखवाने का रिस्क फिलहाल हम नहीं ले सकते। बाद में जब साहिर के नाम की तूती बोलने लगी तो उन्होंने अपनी फिल्मों के लिए साहिर से गाने लिखवाए। बड़ा दिल दिखाते हुए साहिर पिछली बातों को भूल गए। साहिर को गीत लेखन का पहला अवसर फिल्म 'आजादी की राह' में मिला लेकिन उन्हें जिस गीत ने मुकम्मल पहचान दी, वह फिल्म थी 'नौजवान'। एस डी बर्मन साहिर को सुनकर प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके और नौजवान फिल्म के सारे गीत उनसे लिखवाए। इस फिल्म में 'ठंडी हवाएं लहरा के आएं... गीत इस तरह हिट हुआ कि साहिर को पीछे मुड़कर देखने की जरूरत नहीं पड़ी।1951 से 1980 तक उन्होंने हिंदी सिनेमा जगत पर राज किया।
सबसे पहले गीत लेखन के लिए एक लाख रुपये लेने वाले गीतकार साहिर ही थे।साहिर ने सिनेमा जगत में म्यूजिक डायरेक्टरों की मोनोपोली को तोड़ा और उनसे एक रुपया अधिक लेने की शर्त निर्माताओं के सामने रखी।आकाशवाणी और विविध भारती पर पहले गीतकारों का नाम नहीं लिया जाता था,साहिर की पहल से ही यह संभव हो सका।जब लोगों ने तंज किया कि लता मंगेशकर और एस डी बर्मन के बगैर हिट गीत लिखकर दिखाएं तो साहिर ने उसे जमाने के उभरते हुए संगीतकार खय्याम और गायिका सुधा मल्होत्रा को निर्माताओं से परिचित कराया और उनके साथ अनेक हिट गीत दिए। दो वर्षों तक तो उन्होंने लता मंगेशकर की आवाज में अपना कोई गीत रिकॉर्ड होने ही नहीं दिया। नौशाद जैसे संगीतकार के साथ उनका मन नहीं मिला तो उनके साथ काम भी नहीं किया। फिल्म गुमराह के लिए पहली बार जब उन्हें फिल्म फेयर एवार्ड घोषित हुआ तो उन्होंने यह कहते हुए एवार्ड लेने से मना कर दिया कि क्या इसके पहले उन्होंने जो गीत लिखे हैं वे इस लायक नहीं थे?साहिर ने 122 फिल्मों के लिए महज733 गाने लिखे हैं लेकिन उनका हर गीत कोहिनूर की तरह है। यह विडंबना ही है कि अपनी शायरी से सिनेमा को समृद्ध करने वाले इतने बड़े शायर का कोई विजुअल हमारे पास नहीं है।
जुहू स्थित उनके बंगले 'परछाइयां' पर किराएदारों को कब्जा है।यहां उनके नाम पर न कोई संग्रहालय है, न कोई वार्षिक जलसा होता है। चूंकि साहिर ने शादी नहीं की इसलिए उनका कोई वारिस भी नहीं रहा।शाहरुख खान और संजय लीला भंसाली ने सात आठ वर्ष पहले साहिर पर बायोपिक बनाने का ऐलान किया था जिसका अब तक कोई अता पता नहीं है।
बहुत सुंदर ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंअप्रतिम
जवाब देंहटाएंसाहिर साहब जैसे शायर, गीतकार होने के लिए न जाने कितने जन्म लेने पड़ेंगे