बुधवार, 13 अगस्त 2025

समाधि पर धन बरस रहा है, कमा रहा है मजार पैसा



रासबिहारी पाण्डेय

  यह अत्यंत सुखद है कि हिंदी के अत्यंत वरिष्ठ साहित्यकार नंदलाल पाठक उम्र के 97वें पायदान पर चलते हुए अपनी समस्त चेतनाओं के साथ स्वस्थ  और सृजनरत हैं।वे सामाजिक जीवन में सक्रिय रहते हुए नई और पुरानी पीढ़ी के लिए प्रेरणास्रोत बने हुए हैं।

 गत दिनों उनके नये ग़ज़ल संग्रह 'यह हिंदी ग़ज़ल है' का भव्य लोकार्पण समारोह संपन्न हुआ जिसमें हिंदी जगत के अनेक महत्वपूर्ण रचनाकार उपस्थित थे।वे मुंबई के अत्यंत प्रतिष्ठित सोफिया कॉलेज में  35 वर्षों तक अध्यापनरत रहे। उनसे शिक्षा ग्रहण करने वाली उनकी कई शिष्याएं आज मुंबई के औद्योगिक घरानों की बहुएँ हैं।सुखद यह है कि उनमें पाठक जी के प्रति अब भी वही सम्मान है जो छात्र जीवन में था। इसका प्रमाण यह है कि जब भी उनकी कोई नई कृति आती है तो सभी सक्रिय रूप से आयोजन में सम्मिलित होती हैं। इस आयोजन में राजश्री बिरला सहित औद्योगिक घरानों से कई महत्वपूर्ण शख्सियतें मौजूद थीं।

पाठक जी ने हिंदी ग़ज़ल में अरबी फारसी तरकीब से बचते हुए  हिंदी व्याकरण को अपनाया और हिंदी ग़ज़लकारों को उस प्रयोग के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने हिंदी ग़ज़ल में दर्दे दिल नहीं दिल का दर्द लिखा, शुअरा की जगह शायरों लिखा, अशआर की जगह शेरों से काम लिया और खुले तौर पर यह कहा कि आबे गंगा तो चल सकता है, मगर जले गंगा कहने वालों की लोग हंसी ही उड़ाएंगे। हिंदी गजल उर्दू गजल की नकल नहीं होनी चाहिए जैसा कि बहुतायत में देखने को मिलता है। पाठक जी ने अपनी गजलों में भारतीय समाज और जीवन के मिथक, प्रतीक और संदर्भ लिए।उनके शेरों से कुछ उदाहरण द्रष्टव्य हैं-

 

 

कहीं झुकती नहीं हरदम तनी है 

समस्या रीढ़ की हड्डी बनी है।

हमारा ही अहम दुश्मन हमारा 

हमारी इन दोनों हमसे ठानी है। 

जला है आज फिर उस घर में चूल्हा 

बहुत दिन बाद दिवाली मनी है।

 

अनेक भारतीय पौराणिक मिथकों को लेकर उन्होंने क्या खूब गजलें कही हैं।अभिमन्यु और उनकी पत्नी उत्तरा, अप्सरा उर्वशी और दासी मंथरा को आधुनिक संदर्भ से गजल में कैसे जोड़ा है, उसका एक विशिष्ट उदाहरण देखें।

 

पश्चिम की हवाओं में इतना जहर भरा अभिमन्यु चक्रव्यूह में क्लब में है उत्तरा।

अखबार में पढ़ कर मुझे अचरज नहीं लगा

नारी सुधार केंद्र चलती है मंथरा।

 

ठुकरा दिया था उर्वशी का जिसने निवेदन। 

उस पार्थ के सर पर सवार है अब अप्सरा।

 

राधा, कृष्ण और कंस के जीवन को समाहित करता हुआ उनके ये शेर

युगानुकूल परिस्थितियों पर बहुत सटीक बैठते हैं -

 

यह दुनिया कुछ नहीं घटनाओं का एक सिलसिला भर है,

नई पीढ़ी गई पीढ़ी का आसान छीन लेती है।

कोई जब कंस अत्याचार की हद पार करता है 

समय की मांग तब राधा से मोहन छीन लेती है।

धर्म को व्यापार बनाने वालों को उनका यह शेर बेनक़ाब करता है-

हजार राहे हैं इसके आने की और जाने की लाख राहें 

समाधि पर धन बरस रहा है, कमा रहा है मजार पैसा।

पाठक जी स्वस्थ और सृजनरत रहते हुए ऐसे शेरों से मां भारती का भंडार भरते रहें, हम ऐसी मंगल कामना करते हैं।

 

 


3 टिप्‍पणियां:

  1. रासबिहारी जी , मेरा ध्यान कुछ त्रुटियों की तरफ गया है , क्षमा सहित निवेदन करना चाहता हूँ :-
    १- नारी सुधार केन्द्र चलती है के स्थान पर चलाती है मंथरा , होना चाहिए था ।
    २-

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    उत्तर
    1. समय की माँग राधा से मोहन छीन लेती है ।
      के स्थान पर
      समय की माँग मोहन से राधा छीन लेती है ।
      होना चाहिए ।

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    2. टिप्पणीकार - अरुण कुमार त्रिपाठी

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