रासबिहारी
पाण्डेय
पाठक
जी ने हिंदी ग़ज़ल में अरबी फारसी तरकीब से बचते हुए हिंदी व्याकरण को अपनाया
और हिंदी ग़ज़लकारों को उस प्रयोग के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने हिंदी ग़ज़ल
में दर्दे दिल नहीं दिल का दर्द लिखा, शुअरा की जगह शायरों
लिखा, अशआर की जगह शेरों से काम लिया और खुले तौर पर यह कहा
कि आबे गंगा तो चल सकता है, मगर जले गंगा कहने वालों की लोग
हंसी ही उड़ाएंगे। हिंदी गजल उर्दू गजल की नकल नहीं होनी चाहिए जैसा कि बहुतायत
में देखने को मिलता है। पाठक जी ने अपनी गजलों में भारतीय समाज और जीवन के मिथक,
प्रतीक और संदर्भ लिए।उनके शेरों से कुछ उदाहरण द्रष्टव्य हैं-
कहीं
झुकती नहीं हरदम तनी है
समस्या
रीढ़ की हड्डी बनी है।
हमारा
ही अहम दुश्मन हमारा
हमारी
इन दोनों हमसे ठानी है।
जला
है आज फिर उस घर में चूल्हा
बहुत
दिन बाद दिवाली मनी है।
अनेक
भारतीय पौराणिक मिथकों को लेकर उन्होंने क्या खूब गजलें कही हैं।अभिमन्यु और उनकी
पत्नी उत्तरा, अप्सरा
उर्वशी और दासी मंथरा को आधुनिक संदर्भ से गजल में कैसे जोड़ा है, उसका एक विशिष्ट उदाहरण देखें।
पश्चिम
की हवाओं में इतना जहर भरा अभिमन्यु चक्रव्यूह में क्लब में है उत्तरा।
अखबार
में पढ़ कर मुझे अचरज नहीं लगा
नारी
सुधार केंद्र चलती है मंथरा।
ठुकरा
दिया था उर्वशी का जिसने निवेदन।
उस
पार्थ के सर पर सवार है अब अप्सरा।
राधा, कृष्ण और कंस के जीवन को समाहित
करता हुआ उनके ये शेर
युगानुकूल
परिस्थितियों पर बहुत सटीक बैठते हैं -
यह
दुनिया कुछ नहीं घटनाओं का एक सिलसिला भर है,
नई
पीढ़ी गई पीढ़ी का आसान छीन लेती है।
कोई
जब कंस अत्याचार की हद पार करता है
समय
की मांग तब राधा से मोहन छीन लेती है।
धर्म
को व्यापार बनाने वालों को उनका यह शेर बेनक़ाब करता है-
हजार
राहे हैं इसके आने की और जाने की लाख राहें
समाधि
पर धन बरस रहा है, कमा
रहा है मजार पैसा।
पाठक
जी स्वस्थ और सृजनरत रहते हुए ऐसे शेरों से मां भारती का भंडार भरते रहें, हम ऐसी मंगल कामना करते हैं।
रासबिहारी जी , मेरा ध्यान कुछ त्रुटियों की तरफ गया है , क्षमा सहित निवेदन करना चाहता हूँ :-
जवाब देंहटाएं१- नारी सुधार केन्द्र चलती है के स्थान पर चलाती है मंथरा , होना चाहिए था ।
२-
समय की माँग राधा से मोहन छीन लेती है ।
हटाएंके स्थान पर
समय की माँग मोहन से राधा छीन लेती है ।
होना चाहिए ।
टिप्पणीकार - अरुण कुमार त्रिपाठी
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