मन चंगा तो कठौती में गंगा....
एक पंडित जी गंगा स्नान के लिए जा रहे थे।रास्ते में उनका जूता टूट गया,उसकी मरम्मत के लिए किसी को ढ़ूँढ़ते ढ़ूँढ़ते वे किसी तरह रैदास की कुटिया पर पहुँच गये।रैदास ने उनके जूते ठीक किये और पंडित जी को दो सुपारी देते हुये कहा कि इन्हें गंगा जी में डाल दें।पंडित जी ने स्नान के बाद जब सुपारी गंगा में फेंकी तो उन्हें लगा जैसे किसी हाथ ने उन्हें लपक लिया।फिर जल से तत्काल एक हाथ बाहर आया जिसमें सोने का एक कंगन था... आवाज आई….इन्हें मेरी ओर से रैदास को दे देना।
सोने का कंगन देखकर पंडित जी लालच में आ गये।उन्होंने इसे एक सुनार को बेच दिया।सुनार के यहाँ से यह कंगन किसी प्रकार राजदरबार और फिर रानी तक पहुँचा।रानी इसे देखकर मोहित हो गईं।दूसरे हाथ के लिए वे ऐसा ही एक और कंगन चाहती थी।जौहरी लाख प्रयत्न के बाद भी ऐसा कंगन नहीं बना सके,तब खोज हुई उस व्यक्ति की जिससे पहली बार कंगन मिला।पंडित जी जल्द ही पकड़ में आ गये। राजदरबार से यह हुक्म जारी हुआ कि ऐसा ही एक और कंगन लाकर दें वर्ना उन्हें फाँसी दे दी जाएगी।
पंडित जी रोते रोते रैदास के पास पहुँचे और अपना अपराध स्वीकार करते हुए उनसे इस मुश्किल से निजात दिलाने की प्रार्थना की।रैदास जी मुस्कुराये।उन्होंने कठौती में जल भरा और माँ गंगा का स्मरण करते हुए उनसे एक और कंगन देने की प्रार्थना की।दूसरे ही क्षण उनके हाथ में वैसा ही एक और कंगन था। फिर बोले- मन चंगा तो कठौती में गंगा….
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